ये बात ही कुछ ऐसी है... दिल की बात जिसे बांटने का मन करता है... उनको जो ये बात समझ सकें... सोचता हूँ क्या नहीं है हमारे पास... एक स्वस्थ शरीर... एक स्वस्थ मष्तिष्क...सामाजिक रुतबा... पैसा...हम समर्थ हैं ..जिम्मेदार हैं ... अपनी और अपनों की देखभाल कर सकते हैं.. क्या आपने सोचा है कभी उनके बारे मैं जिनके पास कुछ भी नही...वाकई कुछ भी नहीं... जो लोग मजबूर हैं... जो दो जून की रोटी भी बमुश्किल जुटा पाते हैं... अगर उनकी ज़िंदगी मैं कोई मुसीबत आती तो
सोचिये वो क्या करेंगे... कहाँ जायेंगे... आप मैं से कई इस बारे मैं सोचते भी नही होंगे... शायद इसलिए कि आपने ग़रीब को तो बहुत बार देखा होगा लेकिन ग़रीबी को नजदीक से देखने का मौका शायद ही मिला होगा...जहाँ लाचारगी है... कुछ भी न होने की लाचारगी... सब कुछ भगवान पर छोड़ देने की लाचारगी...पर वो भी तो हमारी हमारी तरह इंसान हैं... ज़रा सोचिये...
सोचिये वो क्या करेंगे... कहाँ जायेंगे... आप मैं से कई इस बारे मैं सोचते भी नही होंगे... शायद इसलिए कि आपने ग़रीब को तो बहुत बार देखा होगा लेकिन ग़रीबी को नजदीक से देखने का मौका शायद ही मिला होगा...जहाँ लाचारगी है... कुछ भी न होने की लाचारगी... सब कुछ भगवान पर छोड़ देने की लाचारगी...पर वो भी तो हमारी हमारी तरह इंसान हैं... ज़रा सोचिये...
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