Monday, January 18, 2010

कुछ हाथ.. जुड़े साथ.. बने "सहारू"


सक्षम होने का क्या मतलब है शायद कुछ लोगों के लिए अपनी ज़रूरतों को पूरी कर लेना कुछ लोगों के लिए अपनी ताकत दिखा देना या फ़िर कुछ के लिए समाज मैं अपनी अहमियत साबित करना... लेकिन कुछ लोग इसके ऊपर उठकर भी सोचते हैं.. वो लोग उस सक्षमता से समाज को कुछ दे
ने में विश्वास रखते हैं.. वाकई ऐसी सक्षमता और ऐसे सामर्थ्य को देखकर.. इसके बारे में बात करके गर्व महसूस होता है.. ऐसा ही कुछ मुझे भी महसूस हुआ जब में बीते नवंबर महीने में अपने गांव नन्दप्रयाग जा रहा था.. गाड़ी में मेरे चाचाजी (डॉ. गिरीश चंद्र वैष्णव) ने मुझे १२०० रुपये थमाए और कहा कि मैं नन्दप्रयाग जाकर ये पैसे "सहारू" संस्था के लोगों में से किसी को दे दूं.. मैं इस बात से अनभिज्ञ था.. उन्होंने बताया कि नन्दप्रयाग में विक्रम रौतेला... हरीश रौतेला.. जयकृत मनराल जैसे कुछ लोगों ने मिलकर एक संस्था बनाई है जिसका नाम है सहारू.. सहारू एक गढ़वाली शब्द है जिसका अर्थ है सहारा... इस संस्था का मकसद गांव के ज़रूरतमंद लोगों की मुश्किल वक्त में मदद करना है और इसके लिए इन्होंने.. गांव के सभी सक्षम लोगों से संपर्क साधा है.. ख़ासकर उनसे जो गांव से बाहर रहते हैं और सफल हैं.. ये हर महीने १०० रुपये हर एक सदस्य से जमा करते हैं.. ज़ाहिर है ये एक छोटी सी कोशिश है तो किसी के बुरे वक्त में उसके लिए वरदान साबित हो सकती है.. वाकई ये सोच कितनी खूबसूरत है... आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कितने लोग इस तरह सोच पाते हैं.. और कितने इसे साकार कर पाते हैं.. वाकई ये प्रभावित होने वाली बात है.. औऱ प्रेरणा लेने वाली भी.. काश कि हर एक गांव हर एक कस्बे के लोग ऐसा सोचें.. ऐसा क
रें तो हमारे आस-पास का माहौल कितना खुशनुमा होगा.. हमारा आपसी सामंजस्य कितना बढ़िया होगा.. वाकई ये ही मानवता है..