मेरे एक प्रियजन मेरे पास आये... वो दिल्ली में अपने किसी परिचित के पास से आ रहे थे... आते ही उन्होंने मेरी कुशल क्षेम पूछी... तो मैने भी कुछ औपचारिकताओं के चलते उनकी और इस नाते कि जिनके घर से वो आ रहे थे उनको एक बार मैं भी मिला हूं उनकी कुशल क्षेम भी पूछ ली... उन महानुभाव का यशगान मैने पहले भी सुना था... कि 'वो एक बड़े ही पैसे वाले ... ऊंची पहुंच वाले और इन सबसे बढ़कर एक सहृदय व्यक्ति हैं'... इस बार भी कुछ ऐसी ही बातें हो रही थी मसलन 'वो बड़ा मान करते हैं'... 'हमें लेने-छोड़ने के लिए गाड़ी भिजवा दी'... 'कह रहे थे कि मैं ये करवा दूंगा... वो करवा दूंगा'... 'उनके माता पिता भी बड़े ही सहृदय लोग हैं'... 'घर बहुत ही बढ़िया है हर ओर कीमती सामान यहां तक कि उनके पालतू कुत्ते के गले में भी आठ तोले की सोने की चेन है'... वगैरह-वगैरह...
क्या उस कुत्ते को ये भी मालूम होगा कि सोना क्या है... और आजकल उसके रेट कितने बढ़ गये हैं... वो तो एक कुत्ता है... उसके लिए तो शायद सोने की वो चेन भी लोहे की जंजीर की तरह तकलीफदेह लगती होगी...
मेरे कान सब सुन रहे थे लेकिन मेरा ध्यान ठिठक गया था मेरे दिल कहीं और था मेरा मष्तिस्क अभी-अभी सुने गये कुछ शब्दों को खंगालने लगा था... 'उनके कुत्ते के गले में आठ तोले की चेन'.... मैं ये सोचने लगा कि आठ तोले की चेन पहनकर क्या कुत्ता इतराता होगा ?... जब कभी उनके नौकर उसे बाहर घुमाने ले जाते होंगे तो क्या वो बाकी आवारा कुत्तों को ये कहता होगा कि मैं लोहे की चेन से बंधा हूं तो क्या... देखो मेरे पास आठ तोले की सोने की चेन भी तो है ?... क्या उस कुत्ते को ये भी मालूम होगा कि सोना क्या है... और आजकल उसके रेट कितने बढ़ गये हैं ?... वो तो एक कुत्ता है... उसके लिए तो शायद सोने की वो चेन भी लोहे की जंजीर की तरह तकलीफदेह लगती होगी... फिर मेरा ध्यान अचानक मुक्तिकांत जैसे ज़रूरतमंद की ओर खिंचा आया जो मजबूर है... वो स्वाभिमानी है लेकिन ये स्वाभिमान उसकी ज़िंदगी नहीं बचा सकता... उसके लिए कुछ सहृदय इनसानों की मदद ज़रूरी है.. काश कि सोने की ऐसी निर्रथक जंज़ीरें मुक्तिकांत जैसे लोगों की ज़िंदगी थाम पातीं...